kanchan singla

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मेरा आशियां...!!

एक ओर जमाने से मैं कह आई थी,,
हैं, जितने भी अरमां तेरे,,
तू जोर लगा कर उनको तोड़ दे,,
मैं फिर से बुन लूंगी नए पंखों को,,
उड़ जाऊंगी उस आसमां के पार,,
चिड़िया बन फिर से आऊंगी,,
आंगन में फैले दानों को चुग जाऊंगी,,
पेड़ की किसी डाली को चुन,,
फिर से एक घर बनाऊंगी,,
कतरा कतरा ख्वाबों के तिनके चुन लाऊंगी,,
ना तोड़ सकेगा फिर से कोई ,,
ना छीन सकेगा मुझसे कोई,,
मैं मेरा आशियां कहीं दूर बनाऊंगी,,
नफरतों के समंदर से दूर हो,,
इंसानियत का धर्म अपनाऊंगी,,
जहां कोई किसी को ना कहता हो काफ़िर,,
जहां खून का दरिया नहीं, पानी का झरना बहता हो,,
देख कर दुख किसी का, दूजे का दिल धड़कता हो,,
जहां ठहाके गूंजे अगर जो,,
हो वजह मासूम बच्चे की भोली बातें,,
ना हो मार्मिक ध्वनियां चीत्कारों की,,
ना तोड़ें जहां कोई किसी का विश्वास,,
ना किसी में होड़ हो आगे जाने की,,
जहां इंसान, इंसान का साथी हो और,,
हैवानियत का कुसाथी हो,,
मैं एक ऐसा जहां बसाऊंगी,,
जहां ना कोई शरणार्थी हो,,
युद्ध कल्पनाओं में ना दूर तक भागी हो,,
सब छल कपट से दूर हो,,
साधारण सा जीवन जीते हो,,
बात प्रेम की करते हों और,,
प्रेम से जीवन जीते हों...!!


मैं जोड़ लाऊंगी उन दिलों को,,
जो जानते हैं सिर्फ प्रेम करना,,
जो लौटा सकते हैं इस धरा को,,
फिर से प्रेम से अंकुरित होते जीवन को,,
मैं मेरा आशियां कहीं दूर वहीं उस धरा पर ही बनाऊंगी ।।

#प्रतियोगिता दिनांक 22-मार्च-२०२२
#कॉपीराइट कंचन सिंगला
#मेरा आशियां

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6 Comments

Punam verma

23-Mar-2022 09:20 AM

Nice

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Swati chourasia

23-Mar-2022 09:19 AM

बहुत ही सुंदर रचना 👌👌

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Abhinav ji

23-Mar-2022 08:50 AM

Nice👍

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